कदम
दो - चार कदम चलते थे। कभी आज वो पहिये से भागे जा रहे हैं।
जो काम घंटों तक न होता आज वो सैकड़ों में करे जा रहें हैं।
जो न सुनते थे। कभी लाख बुलाने पर भी आज वो वक्त से पहले उठे जा रहें हैं।
जो बचते थे।कभी धुप-छाया से आज वे कांटों पे चलें जा रहें हैं।
जो जिद्द करते थे कभी हर चीज पाने की आजे वे पाना भुल से गए है।
जो कदम झुमते थे कभी गली -मोहल्ले , बाग-बगीचे आज वे थम से गए हैं।
जो कदम सरारत से भरे थे कभी वे आज संस्कारी बन गए हैं।
ये कदम ही तो हैं। जो मायके की दहलीज लाग कर आज ससुराल आ पहुंचे हैं।
दीपिका बिट्टू
©DEEPIKA BELWAL
कदम
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