ये एक रामायण अंश का कविता रूपांतरण है
प्रभु ! श्री राम
करबद्ध प्रार्थना बारंबार
हे समुद्र देवता तू छुक जा अबकी बार
ये जिद छोड़ ये हठ छोड़
हमको जाना है उस पार
है! प्रतीक्षा में जनक जननी सियाराम
चौबीस प्रहर बीत गये
करत विनती तेरी
अग्नि की ज्वाला अब धधक रही
सब्र की बांध टूट रही हैं
अब प्रकट हो जा
अन्यथा उठेंगे मेरे धनुष और बाण !!
गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे
सूख जाएगा समुद्र का सारा पानी
©shrijam shubham
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