तेरे दिए हुए जख्मों को भूल जाना है, फिरसे बस्ता उठ | हिंदी Shayari

"तेरे दिए हुए जख्मों को भूल जाना है, फिरसे बस्ता उठा मुझे स्कूल जाना है... माँ कहती है मैं मुख्तलिफ हूँ इस ज़माने से, उसका दिल दुखा मैंने ये फिज़ूल जाना है... जो कभी खिला था माँ कि गोद में गुलाब कि तरह, मुरझा एक दिन वो फूल जाना है... कितना बोझ होता है एक बाप के कंधो पर , खुद जिम्मेदारियां पाकर मैंने ये उसूल जाना है... जान, ये बनाबटी लहज़ा, बातें ,मुझे नहीं आती, मुझे अपने बाप के असूलों के अनुकूल जाना है... मियाँ ये जो फरिश्ते बने फिरते हो तुम इस जमीं पर, खुदा के दरबार में हर गुनाह हो कबूल जाना है... .....✍🏻 अनिकेत ' थला ' ©Aniket Yadav (THALA)"

 तेरे दिए हुए जख्मों को भूल जाना है,
फिरसे बस्ता उठा  मुझे स्कूल जाना है...

माँ कहती है मैं मुख्तलिफ हूँ इस ज़माने से,
उसका दिल दुखा मैंने ये फिज़ूल जाना है...

जो कभी खिला था माँ कि गोद में गुलाब कि तरह,
मुरझा एक दिन वो फूल जाना है...

कितना बोझ होता है एक बाप के कंधो पर ,
खुद जिम्मेदारियां पाकर मैंने ये उसूल जाना है...

जान, ये बनाबटी लहज़ा, बातें ,मुझे नहीं आती,
मुझे अपने बाप के असूलों के अनुकूल जाना है...

मियाँ ये जो फरिश्ते बने फिरते हो तुम इस जमीं पर,
खुदा के दरबार में हर गुनाह हो कबूल जाना है...
         .....✍🏻 अनिकेत ' थला '

©Aniket Yadav (THALA)

तेरे दिए हुए जख्मों को भूल जाना है, फिरसे बस्ता उठा मुझे स्कूल जाना है... माँ कहती है मैं मुख्तलिफ हूँ इस ज़माने से, उसका दिल दुखा मैंने ये फिज़ूल जाना है... जो कभी खिला था माँ कि गोद में गुलाब कि तरह, मुरझा एक दिन वो फूल जाना है... कितना बोझ होता है एक बाप के कंधो पर , खुद जिम्मेदारियां पाकर मैंने ये उसूल जाना है... जान, ये बनाबटी लहज़ा, बातें ,मुझे नहीं आती, मुझे अपने बाप के असूलों के अनुकूल जाना है... मियाँ ये जो फरिश्ते बने फिरते हो तुम इस जमीं पर, खुदा के दरबार में हर गुनाह हो कबूल जाना है... .....✍🏻 अनिकेत ' थला ' ©Aniket Yadav (THALA)

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