मुफलिसी का मारा,राह ए ज़िंदगी में रातों का बोझ ढो | हिंदी कविता Video

"मुफलिसी का मारा,राह ए ज़िंदगी में रातों का बोझ ढो रहा है। शायद जाग जाएं नसीब,सालों से जो गहरी नींद में सो रहा है। सह सह कर गम पथरा गई है आंखे,अब आंसू भी ना आते है। अब रोता नहीं मैं देखकर बदतर हालात मेरे जमाना रो रहा है। JP lodhi 11/04/2022 ©J P Lodhi. "

मुफलिसी का मारा,राह ए ज़िंदगी में रातों का बोझ ढो रहा है। शायद जाग जाएं नसीब,सालों से जो गहरी नींद में सो रहा है। सह सह कर गम पथरा गई है आंखे,अब आंसू भी ना आते है। अब रोता नहीं मैं देखकर बदतर हालात मेरे जमाना रो रहा है। JP lodhi 11/04/2022 ©J P Lodhi.

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