देखता कौन है सरहदें इश्क़ में
पार हो जाती है हर हदें इश्क़ में
मौत का डर नहीं आशिक़ों को यहाँ
के मरना भी तो है फतेह इश्क़ में
ज़ालिम ज़माने से गुज़ारिश है ये
एक बार तो कभी पड़े इश्क़ में
ना मिलेगा तुम्हें जो किसी जाम में
कुछ ऐसा नशा सा चढ़े इश्क़ में
©Bhimesh Bhitre
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