लो खोली मैंने अलमारी क्या पहनें अब भला ये अबला नार | हिंदी कविता

"लो खोली मैंने अलमारी क्या पहनें अब भला ये अबला नारी हाय वही पीला वही नीला अब ना भाय एक भी कपड़ा निकल पड़ी जब शॉपिंग करने शॉपकीपर ने शुरू की अपनी बारी हाय पकड़ कपार बैठ गया वो पूछे मैडम अब क्या लोगे हमने कहा तुम्हारे बस के बाहर तुम पुरुष क्या जानो मोल हम नारी जो करते इतना खोज सोचो कैसे करते किसी एक को चूज! ©Akanksha Srivastava"

 लो खोली मैंने अलमारी
क्या पहनें अब भला ये अबला नारी
हाय वही पीला वही नीला
अब ना भाय एक भी कपड़ा
निकल पड़ी जब शॉपिंग करने
शॉपकीपर ने शुरू की अपनी बारी
हाय पकड़ कपार बैठ गया वो
पूछे मैडम अब क्या लोगे
हमने कहा तुम्हारे बस के बाहर
तुम पुरुष क्या जानो मोल
हम नारी जो करते इतना खोज
सोचो कैसे करते किसी एक को चूज!

©Akanksha Srivastava

लो खोली मैंने अलमारी क्या पहनें अब भला ये अबला नारी हाय वही पीला वही नीला अब ना भाय एक भी कपड़ा निकल पड़ी जब शॉपिंग करने शॉपकीपर ने शुरू की अपनी बारी हाय पकड़ कपार बैठ गया वो पूछे मैडम अब क्या लोगे हमने कहा तुम्हारे बस के बाहर तुम पुरुष क्या जानो मोल हम नारी जो करते इतना खोज सोचो कैसे करते किसी एक को चूज! ©Akanksha Srivastava

लो खोली मैंने अलमारी
क्या पहनें अब भला ये अबला नारी
हाय वही पीला वही नीला
अब ना भाय एक भी कपड़ा
निकल पड़ी जब शॉपिंग करने
शॉपकीपर ने शुरू की अपनी बारी
हाय पकड़ कपार बैठ गया वो
पूछे मैडम अब क्या लोगे

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