सुनो तो ऐ-जिंदगी, मुझे भी जीना है,
कठपुतली बनकर अब नहीं रहना है।
जिंदगी के डोर को अपने हाथों में लेकर
खोलकर पिंजरे को मुझे भी उड़ना है।
आसमान का कुछ हिस्सा मेरा भी है,
इस गगन में जगमगाना मुझे भी है।
माना अंधेरी रात है, राह नहीं दिखेगी,
मगर आशा का दीप जलाना मुझे भी है।
©ChandraVilash Kachwahe
#कुछ_अनकही_बातें #Inspiration