White बोझ इक दिल पे लिए फिरता है
आदमी खुद से रूठ जाता है।
बेख्याली में घुटन में अक्सर
लुत्फ जीने का छूट जाता है।
कामयाबी के रास्तों पर ही
साथ अपनों का छूट जाता है।
जो सदा खुद पे हौसलों रखते
क्यों सब्र उनका टूट जाता है।
नेकियाँ कर के जो बनाया घर
रंजिशें करके फूट जाता है।
टूटता अपनों पर भरोसा जब
चोर बाहर का लूट जाता है।
©प्रतिभा त्रिपाठी
'दर्द भरी शायरी'