अनुकूलता में जीना भी क्या जीना है प्रतिकूलता में

"अनुकूलता में जीना भी क्या जीना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है... अरे तू क्यों अनुकूलता में हँसता है और प्रतिकूलता में अपनी हंसी खो देता है तू क्यों भूल जाता है कीचड में ही तो कमल खिलता है तभी तो वो कमल कहलाता है तुझे भी तो कमल बनना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है... तू डरता क्यों है प्रतिकूलता से और अनुकूलता में रम सा क्यों जाता है ये तो परिस्थितियां हैं आती जाती रहेगी तू इनसे क्यों घबराता है अभी तो तुझे और निखरना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है..... तू क्यों प्रतिकूलताओं में अपनी जान दाँव पर लगता है तू क्यों उनमे मातम सा मनाता है तू क्यों भूल जाता है काली रात के बाद नया सवेरा भी आता है तू क्यों अपनी पहचान मिटाता है अभी तो तुझे और चलना हैं प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है.... तू क्यों अपने को नहीं समझाता है क्यों आत्महत्या का भाव सबसे पहले मन में लाता है क्यों अपने साथ औरो की खुशियां दाँव पर लगाता है तू क्यों संभल नहीं पाता है अभी तो तुझे और सीखना संभलना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है..... ✒️pranjal.."

 अनुकूलता में जीना भी क्या जीना है 
प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है...
अरे तू क्यों अनुकूलता में हँसता है 
और प्रतिकूलता में अपनी हंसी खो देता है 
तू क्यों भूल जाता है कीचड में ही तो कमल खिलता है 
तभी तो वो कमल कहलाता है 
तुझे भी तो कमल बनना है 
प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है... 
तू डरता क्यों है प्रतिकूलता से
और अनुकूलता में रम सा क्यों जाता है 
ये तो परिस्थितियां हैं आती जाती रहेगी 
तू इनसे क्यों घबराता है
अभी तो तुझे और निखरना है 
प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है..... 
तू क्यों प्रतिकूलताओं में अपनी जान दाँव पर लगता है 
तू क्यों उनमे मातम सा मनाता है 
तू क्यों भूल जाता है काली रात के बाद नया  सवेरा भी आता है 
तू क्यों अपनी पहचान मिटाता है 
अभी तो तुझे और चलना हैं 
प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है....
तू क्यों अपने को नहीं समझाता है 
क्यों आत्महत्या का भाव सबसे पहले मन में लाता है 
क्यों अपने साथ औरो की खुशियां दाँव पर लगाता है 
तू क्यों संभल नहीं पाता है 
अभी तो तुझे और सीखना संभलना है 
प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है..... 
       
✒️pranjal..

अनुकूलता में जीना भी क्या जीना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है... अरे तू क्यों अनुकूलता में हँसता है और प्रतिकूलता में अपनी हंसी खो देता है तू क्यों भूल जाता है कीचड में ही तो कमल खिलता है तभी तो वो कमल कहलाता है तुझे भी तो कमल बनना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है... तू डरता क्यों है प्रतिकूलता से और अनुकूलता में रम सा क्यों जाता है ये तो परिस्थितियां हैं आती जाती रहेगी तू इनसे क्यों घबराता है अभी तो तुझे और निखरना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है..... तू क्यों प्रतिकूलताओं में अपनी जान दाँव पर लगता है तू क्यों उनमे मातम सा मनाता है तू क्यों भूल जाता है काली रात के बाद नया सवेरा भी आता है तू क्यों अपनी पहचान मिटाता है अभी तो तुझे और चलना हैं प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है.... तू क्यों अपने को नहीं समझाता है क्यों आत्महत्या का भाव सबसे पहले मन में लाता है क्यों अपने साथ औरो की खुशियां दाँव पर लगाता है तू क्यों संभल नहीं पाता है अभी तो तुझे और सीखना संभलना है प्रतिकूलता में जीना ही तो जीना है..... ✒️pranjal..

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