मुझे घर बनाने; घर से दूर निकलना पड़ा, और गिरते-गिर | हिंदी कविता

"मुझे घर बनाने; घर से दूर निकलना पड़ा, और गिरते-गिरते कई बार सम्हलना पड़ा। हारा हिम्मत; टूटा हौसला कई बार, बेशक! “कुछ दूर और!” कह कर बस चलना पड़ा। थक कर चूर; जब सोया कभी इत्मीनान से, नींद आई नहीं पूरी रात; बस करवट बदलना पड़ा। याद आती रही मां, बाप से दूर होना खलता रहा, मत पूछो, घर की चौखट से दूर कितना मचलना पड़ा। ©Rudra Pratap Singh"

 मुझे घर बनाने; घर से दूर निकलना पड़ा,
और गिरते-गिरते कई बार सम्हलना पड़ा।

हारा हिम्मत; टूटा हौसला कई बार, बेशक!
“कुछ दूर और!” कह कर बस चलना पड़ा।

थक कर चूर; जब सोया कभी इत्मीनान से,
नींद आई नहीं पूरी रात; बस करवट बदलना पड़ा।

याद आती रही मां, बाप से दूर होना खलता रहा,
मत पूछो, घर की चौखट से दूर कितना मचलना पड़ा।

©Rudra Pratap Singh

मुझे घर बनाने; घर से दूर निकलना पड़ा, और गिरते-गिरते कई बार सम्हलना पड़ा। हारा हिम्मत; टूटा हौसला कई बार, बेशक! “कुछ दूर और!” कह कर बस चलना पड़ा। थक कर चूर; जब सोया कभी इत्मीनान से, नींद आई नहीं पूरी रात; बस करवट बदलना पड़ा। याद आती रही मां, बाप से दूर होना खलता रहा, मत पूछो, घर की चौखट से दूर कितना मचलना पड़ा। ©Rudra Pratap Singh

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