इंसान होकर तू इंसान से डरता क्यो हैं?
इस दुनिया में रहकर,
अपनी ही जि़दगीं से डरता क्यो हैं?
जो जीना हो खुलकर,
एक सलाह तू मेरी मान,
ज़ज्बादों को बंद कर एक पिटाड़़े में,
क्योंकि ज़ज्बाद यहाँ बिकते हैं,
खुलेआम गली-बाजारो में।
_कोमल साह
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