Unsplash कब बचपन बीत गया खेल में , जबानी बीत रही ह | हिंदी Poetry

"Unsplash कब बचपन बीत गया खेल में , जबानी बीत रही है हसरतो में , पता नहीं जिन्दगी किस मोड पर करबट बदले, और कौनसा पल आखरी हो , जितना हो सके जिन्दगी से कुछ पल चुराके, अपनी हसरतो को पूरा कर लो , कुछ हँस लो तो कुछ खुल के जी लो , कुछ वक्त खुद को तो कुछ पल अपनो के साथ , कुछ बातें भुलाके तो कुछ जख्म सहके गुजार लो , ©Sitaram Saini"

 Unsplash कब बचपन बीत गया खेल में ,
जबानी बीत रही है हसरतो में ,

पता नहीं जिन्दगी किस मोड पर करबट बदले,
 और कौनसा पल आखरी हो , 

जितना हो सके जिन्दगी से कुछ पल चुराके, 
अपनी हसरतो को पूरा कर लो , 
कुछ हँस लो तो कुछ खुल के जी लो ,

कुछ वक्त खुद को तो  कुछ पल अपनो  के साथ ,
कुछ बातें भुलाके तो कुछ जख्म सहके गुजार लो ,

©Sitaram Saini

Unsplash कब बचपन बीत गया खेल में , जबानी बीत रही है हसरतो में , पता नहीं जिन्दगी किस मोड पर करबट बदले, और कौनसा पल आखरी हो , जितना हो सके जिन्दगी से कुछ पल चुराके, अपनी हसरतो को पूरा कर लो , कुछ हँस लो तो कुछ खुल के जी लो , कुछ वक्त खुद को तो कुछ पल अपनो के साथ , कुछ बातें भुलाके तो कुछ जख्म सहके गुजार लो , ©Sitaram Saini

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