यारों यूंही मिलना मुझे
बेफिक्र सी महफिल में तुम
ये उम्र भी ठहरा करे
गलियों में ही गुजरा करे
वक्त भी लौटे यहीं पर
कि यार बैठे हैं यहां
नसीब ले जाए चाहे जहां
आवाज़ तुम देना मुझे
यारों यूंही मिलना मुझे
ये तय है कि लंबा सफ़र है
थकने लगो जब राह में
किस्से पुराने याद करना
शाम बोझिल हो कभी तो
दिन सुहाने याद करना
मसरूफ होगे तुम मगर
फुर्सत से ही मिलना मुझे
यारों यूंही मिलना मुझे
©साज़_ए_आवाज़
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