2122 2122 212
बज्म में जब वो बुलाता है मुझे
जाम नज़रो के पिलाता है मुझे
जल्वे अपने हुस्न के हमको दिखा
वो अदाओं से लुभाता है मुझे
पास आकर वो नजाकत से मेरे
भर के बाहों में सताता है मुझे
चढ़ गया यूँ इश्क का उनके नशा
ख्वाब में भी डगमगाता है मुझे
निकलूँ जो उनके कुचे से में कभी
राह में आकर बुलाता है मुझे
बैठ कर वो संग दुश्मन के मेरे
इश्क में वो आजमाता है मुझे
कैसे कर लूँ में यकीं उसपे यहाँ
संग गैरो के बिठाता है मुझे
( लक्ष्मण दावानी )
20/12/2016
©laxman dawani
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