कभी दरों-दीवार कभी दहलीज़ तॉंकते है, बचपन के ये प | हिंदी विचार Video

"कभी दरों-दीवार कभी दहलीज़ तॉंकते है, बचपन के ये पल झरोखों से झॉंकते हैं, मैं अकेला रहा हूं उन यादों में रात भर...! जो ऑंखो को भिगोकर ज़ख्मों को छॉंटते है। ©PUSHKAR MISHRA "

कभी दरों-दीवार कभी दहलीज़ तॉंकते है, बचपन के ये पल झरोखों से झॉंकते हैं, मैं अकेला रहा हूं उन यादों में रात भर...! जो ऑंखो को भिगोकर ज़ख्मों को छॉंटते है। ©PUSHKAR MISHRA

#GateLight @B Ravan बाबा ब्राऊनबियर्ड @@RajeshRj Praveen Jain "पल्लव" @Anshu writer

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