कैसे-कैसे लोग सितम ढाते है..
अपनों की कामयाबी से ही जलते है..
खुद तो कोइ मका हासिल ना कर सके ज़िन्दगी में..
वीरासत में मिली दौलत पर इतराते है...
अरे साहब एक चराग रौशन कर देता है अँधेरे घर को..
और हसत की आग में सब जल कर राख़ हो जाते है..
इतनी सी बात क्या अपने नही समझ पाते है...
ऐसे रिश्तो के साये से भी डरते है अब हम..
©uzma
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