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जीना हैं अकेले फिर भी लोगों के पीछे दुख के मेले हैं
किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों हम अब भी अकेले हैं
जलते हैं अकेले ही यादों के दरिया में भी बुझती नहीं वो आग
तफ़्दिशे जलन भी झेले हैं
किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों मगर और भी अकेले हैं
नसीब का लिखा वो ही जाने तक़दीर का दिया हुआ
दर्द_ए _नसीब हम ने भी झेले है
अब इस के बाद न जाने नसीब में क्या है
ना आओ साथ हमारे जिंदगी में हमारे बहुत झमेले हैं
ना याद आते अब वो लम्हे ना याद आते हो तुम कभी
इस कदर मेरे सफ़र में ओ मुसाफ़िर
कि अब तन्हाई इस कदर मेरी यादों में घुल गई कि
ना अब कोई मिलता ना अब कभी बिछड़ता
शायद अब हम अपने आप से भी नहीं मिलते कि
अब हम अपने ध्यान से उतरे हुए से आसुओं के रेले हैं
के ना अब कभी कहना मुझसे कि साथ चलने को
तुम्हारे हम अपना सब कुछ छोड़ चलते हैं
अब ना मिलेंगे हम ना वो हमारी मोहब्बत
मिलेंगे तो सिर्फ हम और हमारी तन्हाई जिसको दिया तुमने
और हमने वो जख्म सदियों से झेले है
फिर ये खेल ना खेलो हमारे साथ समझ जरा ज़ख्मी हु
और टूटे हुए इस कदर की फ़िर ना जुड़ सकू दोबारा
जो खेल लोगों ने सदियों से खेले हैं मत आजमा ए ज़ालिम
कि आवाज़ तक नहीं आएगी मेरे दर्द कि हम
अब अकेले बहुत अकेले हैं
©Sonuzwrites
#good_night ग़ज़ल ✍️