आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है, अपनी शर्तो | हिंदी Shayari Vid

"आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है, अपनी शर्तो पे ज़िंदगी जीने का नशा ही कुछ और है, वरना हकीकतें तो अक्सर रुला देती है, ग़लतफहमी में जीने का मज़ा कुछ और ही है। ©Kartik Verma "

आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है, अपनी शर्तो पे ज़िंदगी जीने का नशा ही कुछ और है, वरना हकीकतें तो अक्सर रुला देती है, ग़लतफहमी में जीने का मज़ा कुछ और ही है। ©Kartik Verma

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