जगत के प्रेम का अभिसार हूँ मैं। नदी हूँ या उद | हिंदी कविता Video

" जगत के प्रेम का अभिसार हूँ मैं। नदी हूँ या उदधि परिवार हूँ मैं। सिमटती जा रही मेरी रवानी, व्यथाओं से भरी मेरी कहानी। जनम से मृत्यु तक उद्गार हूँ मैं, नदी हूं या उदधि परिवार हूँ मैं। गुजरती हूँ सदा हिम आँगनों से। पहाड़ों से घिरे निर्जन वनों से। फ़सल की उम्र का आधार हूँ मैं, नदी हूं या उदधि परिवार हूँ मैं। ****** ©करन सिंह परिहार "

जगत के प्रेम का अभिसार हूँ मैं। नदी हूँ या उदधि परिवार हूँ मैं। सिमटती जा रही मेरी रवानी, व्यथाओं से भरी मेरी कहानी। जनम से मृत्यु तक उद्गार हूँ मैं, नदी हूं या उदधि परिवार हूँ मैं। गुजरती हूँ सदा हिम आँगनों से। पहाड़ों से घिरे निर्जन वनों से। फ़सल की उम्र का आधार हूँ मैं, नदी हूं या उदधि परिवार हूँ मैं। ****** ©करन सिंह परिहार

#नदी

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