लंपि गऊ माता की बीमारी है या हमारी करनी,
बुरा हम कर रहे है और भोग रही है हमारी जननी।
कहीं ये हमारे विनाश का संकेत तो नहीं,
कहीं ये प्रकृति का कोई इशारा तो नहीं।
ऐ मानव अब बहुत हुआ रुक जा संभल जा,
जिस, का तु वंशज है अब अपनी उस माँ को बचा।
तेरी गैया आज संकट में है कान्हा और मनुष्य क्षमाप्राथी है,
हमें माफ कर, अरज सुन, अपनी बंशी बजा और सब ठीक कर दे।
~Khushi
@khushi_ke_ehsaas
©Komal Mundhra
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