Unsplash इस गुलाबी शाम को बस शाम ही रहने दो, दबे ज | हिंदी शायरी

"Unsplash इस गुलाबी शाम को बस शाम ही रहने दो, दबे जज़्बातों को मेरे अनजाम ही रहने दो। ना दिखाओ मुझे ख़्वाब जन्नत-ए-इश्क़ की, चांद और तारों को आसमान में ही रहने दो। मत छेड़ो मेरी तन्हाई के इस सुकून को, दर्द का दरिया है, इसे बहता ही रहने दो। मैं मोम नहीं, जो गले तेरी तपिश से, मैं पत्थर हूँ, मुझे पत्थर ही रहने दो। ©theABHAYSINGH_BIPIN"

 Unsplash इस गुलाबी शाम को बस शाम ही रहने दो,
दबे जज़्बातों को मेरे अनजाम ही रहने दो।
ना दिखाओ मुझे ख़्वाब जन्नत-ए-इश्क़ की,
चांद और तारों को आसमान में ही रहने दो।

मत छेड़ो मेरी तन्हाई के इस सुकून को,
दर्द का दरिया है, इसे बहता ही रहने दो।
मैं मोम नहीं, जो गले तेरी तपिश से,
मैं पत्थर हूँ, मुझे पत्थर ही रहने दो।

©theABHAYSINGH_BIPIN

Unsplash इस गुलाबी शाम को बस शाम ही रहने दो, दबे जज़्बातों को मेरे अनजाम ही रहने दो। ना दिखाओ मुझे ख़्वाब जन्नत-ए-इश्क़ की, चांद और तारों को आसमान में ही रहने दो। मत छेड़ो मेरी तन्हाई के इस सुकून को, दर्द का दरिया है, इसे बहता ही रहने दो। मैं मोम नहीं, जो गले तेरी तपिश से, मैं पत्थर हूँ, मुझे पत्थर ही रहने दो। ©theABHAYSINGH_BIPIN

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**इस गुलाबी शाम को बस शाम ही रहने दो,
दबे जज़्बातों को मेरे अनजाम ही रहने दो।
ना दिखाओ मुझे ख़्वाब जन्नत-ए-इश्क़ की,
चांद और तारों को आसमान में ही रहने दो।

मत छेड़ो मेरी तन्हाई के इस सुकून को,

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