हम दुर हो रहे हैं... हरेक में अब मगरूरी है कोई इश | हिंदी कविता

"हम दुर हो रहे हैं... हरेक में अब मगरूरी है कोई इश्क में मशगूल हुआ किसी पर आजीविका गहराई है तीन दफा हो चुके अलहदा हम अब चौथे की बारी है ज़र के खोने से ज्यादा ज़रर नफ्स के नाबुद होने का है कुछ अपने कुछ साथियों के दुर होने का है धीरे-धीरे सब खो रहे हैं हम दुर हो रहे हैं... बढ़ते बढ़ते दूरियां यूं बढ़ी की अब उस पार का कुछ नजर नहीं न आता न आएगा कभी सब अपने में ही दौड़े जा रहें हैं हम दूर हो रहे हैं... ©गीतेय..."

 हम दुर हो रहे हैं...
हरेक में अब मगरूरी है 
कोई इश्क में मशगूल हुआ 
किसी पर आजीविका गहराई है 
तीन दफा हो चुके अलहदा हम 
अब चौथे की बारी है


ज़र के खोने से ज्यादा ज़रर 
नफ्स के नाबुद होने का है
कुछ अपने कुछ साथियों के दुर होने का है 
धीरे-धीरे सब खो रहे हैं 
हम दुर हो रहे हैं...

बढ़ते बढ़ते दूरियां यूं बढ़ी
की अब उस पार का कुछ नजर नहीं
न आता न आएगा कभी
सब अपने में ही दौड़े जा रहें हैं
हम दूर हो रहे हैं...

©गीतेय...

हम दुर हो रहे हैं... हरेक में अब मगरूरी है कोई इश्क में मशगूल हुआ किसी पर आजीविका गहराई है तीन दफा हो चुके अलहदा हम अब चौथे की बारी है ज़र के खोने से ज्यादा ज़रर नफ्स के नाबुद होने का है कुछ अपने कुछ साथियों के दुर होने का है धीरे-धीरे सब खो रहे हैं हम दुर हो रहे हैं... बढ़ते बढ़ते दूरियां यूं बढ़ी की अब उस पार का कुछ नजर नहीं न आता न आएगा कभी सब अपने में ही दौड़े जा रहें हैं हम दूर हो रहे हैं... ©गीतेय...

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