गर्दिशों का मारा हूं, “मैं आवारा हूं”.... कोई ठिका | हिंदी

"गर्दिशों का मारा हूं, “मैं आवारा हूं”.... कोई ठिकाना नहीं मेरा, “मैं बंजारा हूं”! एक टूटा हुआ शाख का पत्ता मैं हूं जमीं पे कोई बोझ बेजान सा मैं हूं। ना घर,ना किसी के दिल मे आसियां मेरा मैं राहों पर चलता एक अंजान मुसाफिर हूं। कोई अपना समझ सके,कोई अपना माने भला इसके काबिल मैं बना कहां हूं।। लबों पे आकर रुक जायेगा इक रोज नाम मेरा तेरे दिल में अब तलक मैं ठीक से उतरा कहां हूं। झूठ,धोखा मुफलिसी से अनजान हूं मैं इन सब से अब तलक मैं मिला कहां हूं।। ©Shayar Mukesh Kr Tiwari. "

गर्दिशों का मारा हूं, “मैं आवारा हूं”.... कोई ठिकाना नहीं मेरा, “मैं बंजारा हूं”! एक टूटा हुआ शाख का पत्ता मैं हूं जमीं पे कोई बोझ बेजान सा मैं हूं। ना घर,ना किसी के दिल मे आसियां मेरा मैं राहों पर चलता एक अंजान मुसाफिर हूं। कोई अपना समझ सके,कोई अपना माने भला इसके काबिल मैं बना कहां हूं।। लबों पे आकर रुक जायेगा इक रोज नाम मेरा तेरे दिल में अब तलक मैं ठीक से उतरा कहां हूं। झूठ,धोखा मुफलिसी से अनजान हूं मैं इन सब से अब तलक मैं मिला कहां हूं।। ©Shayar Mukesh Kr Tiwari.

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