कल रात्रि से अंतर्मन मेरा , कर रहा चिंतन
इक बार तो तुम करो , अपनी लेखनी पर मंथन
कि इतने वर्षों मे , जो भी है तुमने लिखा
क्या देख अपनी कलम को , आँख मिला पाओगे भला
कोशिश करना तुम , कुछ अच्छा लिखने की
मनगढ़न्त लिखने की बजाए , कुछ सच्चा लिखने की
बेशक पढ़ने-सुनने वाले होंगे , कुछ कम गिनती मे
लेकिन तुम होगे , उनकी हर दुआ और उनकी हर विनती मे
कभी लिख़ना कुछ खुद के लिए , कभी ख्याल उनका भी रखना
अगर महफ़िलों मे हो नाम तुम्हारा , तो जिक्र तुम उनका भी करना
और ज़ब पहुंच जाओगे , एक दिन सफलता की चोटी पर तुम
दिल मे कभी ना सोचना 'मै' , शुक्रिया करना कह कर साथ है 'हम'
कल रात्रि से अंतर्मन मेरा कर रहा चिंतन
इक बार तो तुम करो अपनी लेखनी पर मंथन
©pankeet
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