ऐ, गालिब...!
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हर बार कि तरह इस बार भी बरस...!
सावन में न सही तू मन्माश में बरस...!
ऐ जो दर्द दे दिल का जख्म भरा है...!
इसे जरा सा कुदेर कर बरस...!
मैंखानो में न सही उसकी यादों में तो बरस ...!
हर बार कि तरह तू इस बार भी बरस...!
{I miss you}=>[M.S]
©Sumit sahu