सोचना कभी_ क्या गुनाह कर आए, फकत एक फूल की खातिर_ | हिंदी शायरी

"सोचना कभी_ क्या गुनाह कर आए, फकत एक फूल की खातिर_ पूरा बगीचा रौंद आए! ©Shalini Nigam"

 सोचना कभी_
क्या गुनाह कर आए,
फकत एक फूल 
की खातिर_ पूरा बगीचा 
रौंद आए!

©Shalini Nigam

सोचना कभी_ क्या गुनाह कर आए, फकत एक फूल की खातिर_ पूरा बगीचा रौंद आए! ©Shalini Nigam

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