।।फस कर चक्रव्यूह में अब अभिमन्यु
और न प्राण गवायेगा
अब विपदा और न घेरेगी रथ को उसके
अब वो अर्जुन का गांडीव बन जाएगा
न अब कोई महारथी उसके बाणों का
घाव सह पाएगा
फस कर चक्रव्यूह में अब अभिमन्यु
और न प्राण गवायेगा
न रोएगी अब मां द्रोपदी,न सुभद्रा के आंख से
आंसू आएगा,
अब न्याय करेगा अभिमन्यु स्वयं,अब कोई भीष्म
न कोई द्रोण न कोई विदुर आएगा,
दंड मिलेगा अब बस मृत्यु का, न कोई शांति
का प्रस्ताव दिया जाएगा,
जो खीचेगा स्त्री के वस्त्रों को उसकी आबरू
को ठेस पहुंचाएगा
अब हर उस दुर्योधन के पापो का हिसाब
स्वयं अभिमन्यु करने आएगा
फस कर चक्रव्यूह में अब अभिमन्यु
और न प्राण गवायेगा।।
©Shubham Asthana
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