Unsplash मुझसे वो दूर जा रही है रफ्ता रफ्ता,
हिज़्र की रात करीब आ रही है रफ्ता रफ्ता ।
साया बनके मेरे साथ चलने के तेरे वादे,
देखो अब शाम ढल रही है रफ्ता रफ्ता ।
उम्र-ए-मोहब्बत आंखों से होकर ऐसे गुज़री,
हाथों से रेत फिसल रही है ज्यों रफ्ता रफ्ता ।
बुझ गई दिल की शमा, हुई कम इश्क की रोशनी,
अब चिरागों की लौ भी बुझ रही है रफ्ता रफ्ता ।
शायरी का तेरी यूं हो रहा है कमाल "सागर",
दर्द में वो भी डूब रही है रफ्ता रफ्ता ।
©Sameer Kaul 'Sagar'
#lovelife