अलविदा कह ही गए तुम आख़िर, ज़ख़्म कुछ दे ही गए तुम आख़

"अलविदा कह ही गए तुम आख़िर, ज़ख़्म कुछ दे ही गए तुम आख़िर। मैं भरी भीड़ में भी तन्हा हूँ, बात ये कह ही गए तुम आख़िर। वक़्त की रेत मेरे हाथों से, छीन कर ले ही गए तुम आख़िर। मैंने मंज़िल पे चाहा पहुँचाना, राह में खो ही गए तुम आख़िर। अश्क़-ए-नम हैं मेरी निगाहें भी, दर्द-से बह ही गए तुम आख़िर। अपना दामन छुड़ा के हाथों से, फ़ासले दे ही गए तुम आख़िर। "प्रीत" हर राज़ दफ़्न कर दिल में, संग दिल ले ही गए तुम आख़िर। ©®प्रतिष्ठा'प्रीत' "

 अलविदा कह ही गए तुम आख़िर,
ज़ख़्म कुछ दे ही गए तुम आख़िर।

मैं भरी भीड़ में भी तन्हा हूँ,
बात ये कह ही गए तुम आख़िर।

वक़्त की रेत मेरे हाथों से,
छीन कर ले ही गए तुम आख़िर।

मैंने मंज़िल पे चाहा पहुँचाना,
राह में खो ही गए तुम आख़िर।

अश्क़-ए-नम हैं मेरी निगाहें भी,
दर्द-से बह ही गए तुम आख़िर।

अपना दामन छुड़ा के हाथों से,
फ़ासले दे ही गए तुम आख़िर।

"प्रीत" हर राज़ दफ़्न कर दिल में,
संग दिल ले ही गए तुम आख़िर।
©®प्रतिष्ठा'प्रीत'

अलविदा कह ही गए तुम आख़िर, ज़ख़्म कुछ दे ही गए तुम आख़िर। मैं भरी भीड़ में भी तन्हा हूँ, बात ये कह ही गए तुम आख़िर। वक़्त की रेत मेरे हाथों से, छीन कर ले ही गए तुम आख़िर। मैंने मंज़िल पे चाहा पहुँचाना, राह में खो ही गए तुम आख़िर। अश्क़-ए-नम हैं मेरी निगाहें भी, दर्द-से बह ही गए तुम आख़िर। अपना दामन छुड़ा के हाथों से, फ़ासले दे ही गए तुम आख़िर। "प्रीत" हर राज़ दफ़्न कर दिल में, संग दिल ले ही गए तुम आख़िर। ©®प्रतिष्ठा'प्रीत'

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