White मेरी आंखों की पुतली में
तू बन कर प्रान समां जा रे
जिससे कण कण में स्पंदन हो,
मन में मलायानिल चंदन हो,
करुणा का नव अभिनन्दन हो-
वह जीवन गीत सुना जा रे!
खिंच जाय अधर पर वह रेखा-
जिसमें अंकित हों मधु लेखा,
जिसको यह विश्व करे देखा,
वह स्मिति का चित्र बना जा रे!
-जयशंकर प्रसाद
©gudiya
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