किश्त
कोई तो किश्त है जो शायद अदा नहीं है ,
साँस बाक़ी है और हवा नहीं है ,
नसीहतें , सलाहें , हिदायतें तमाम पर्चे पर है
पर दवा नहीं है ,
आँख भी ढक लीजिये संग मुँह के मंज़र सचमुच अच्छा नहीं है ,
रक्त बिका , पानी बिका , आज बिक रही है हवा ,
कुदरत का ये तमाचा बेवजह नहीं है हरेक शामिल है
इस गुनाह में कुसूर किसी एक का नहीं है ,
वक्त है अब भी ठहर जाओ ,
वक्त है अब भी ठहर जाओ ,
अभी सब कुछ लुटा नहीं है... राहुल प्रधान
©RAHUL PARDHAN
#Nodiscrimination