मंजिल क्या हैं मालूम नही थी बस चल रहा हु राही बनकर | हिंदी शायरी

"मंजिल क्या हैं मालूम नही थी बस चल रहा हु राही बनकर कभी अंधेरा कभी उजाला बस ढूंढ रहा हूं इस कायनात का शिखर ©Drx. Mahesh Ruhil"

 मंजिल क्या हैं मालूम नही थी
बस चल रहा हु राही बनकर
कभी अंधेरा कभी उजाला
बस ढूंढ रहा हूं इस कायनात का शिखर

©Drx. Mahesh Ruhil

मंजिल क्या हैं मालूम नही थी बस चल रहा हु राही बनकर कभी अंधेरा कभी उजाला बस ढूंढ रहा हूं इस कायनात का शिखर ©Drx. Mahesh Ruhil

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