गजल
हादसों ने क्या हाल कर बना समझा दिया,
क्षुव्ध मन बरसती आखे बेहाल बना दिया!
कितने परिवार उजड़े कितना नुकसान हुआ ,
मदद में लगे पड़ोस कितनो का सम्भाल हुआ१
जो जान खो चुके उनका परिवार बदहवास दिखा ,
प्रकृति- आपदा का तो करवट सा आभास हुआ!
पल में मिटा दिया सब रौद्र रूप जो समक्ष हुआ ,
सम्भल जा इंसान ! छेड़खानी से कुदरत चाल हुआ!
उस अज्ञात असीम को कौन कैसे पहचान सका ,
आस और विनाश “मैत्री “खुशी -क्रोध चाल हुआ!
स्वरचित –रेखा मोहन
©R. Mohani
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