तब हमें लोग आवारा कहा करते थे, जब हम रोज तेरी गलियों से गुजरा करते थे, अब मुझे लोग शरिफ कहने लगे, जब से तेरी डोली उस गली से रूखसत हुई है!ये लोग भी न बड़े अजीब होते है, इन्हें न आशिक़ी की कद्र है और ना ही आवारा लोगों की पहचान है..
©दो पल का शायर
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