ज़रा उठाओ ना सनम(आक़ा) अपने रुख़ से ये चिलमन के ते

"ज़रा उठाओ ना सनम(आक़ा) अपने रुख़ से ये चिलमन के तेरा दीद हो जाये कि छटे मेरे सर से ग़म के ये बादल और मेरी ईद हो जाये उसे कुछ फ़र्क़ ही नहीं पड़ता जिसके लिए हमेशा बहते हैं दर्द व ग़म के आंसू और कितना दर्द रहता है मेरे सीने में इस बे नवा, नाचीज़ पे बस इतना करम कर दो मेरे आक़ा, कि वो भी मेरा मुरीद हो जाये मो. इक्साद अंसारी"

 ज़रा उठाओ ना सनम(आक़ा) अपने रुख़ से ये चिलमन के तेरा दीद हो जाये
कि छटे मेरे सर से ग़म के ये बादल और मेरी ईद हो जाये
उसे कुछ फ़र्क़ ही नहीं पड़ता जिसके लिए हमेशा बहते हैं दर्द व ग़म के आंसू और कितना दर्द रहता है मेरे सीने में
इस बे नवा, नाचीज़ पे बस इतना करम कर दो मेरे आक़ा, कि वो भी मेरा मुरीद हो जाये
मो. इक्साद अंसारी

ज़रा उठाओ ना सनम(आक़ा) अपने रुख़ से ये चिलमन के तेरा दीद हो जाये कि छटे मेरे सर से ग़म के ये बादल और मेरी ईद हो जाये उसे कुछ फ़र्क़ ही नहीं पड़ता जिसके लिए हमेशा बहते हैं दर्द व ग़म के आंसू और कितना दर्द रहता है मेरे सीने में इस बे नवा, नाचीज़ पे बस इतना करम कर दो मेरे आक़ा, कि वो भी मेरा मुरीद हो जाये मो. इक्साद अंसारी

MD Iksad Ansari

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