खैरियत पूंछते थे जो मेरी कभी , आज मिलते नहीं ख़्वाब में भी हमें..
हश्र -ए -दिल की कहानी मेरी , भला यार कैसे सुनाएं तुम्हें।
वीरान सी हैं ये सारी बातें , ये खाली से दिन , ये तन्हा रातें...
यादें तुम्हारी डसती हैं हर दम , कैसे भुलाएं अब हम तुम्हें।
©शून्य
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