मुहब्बत की तमना है तो फिर वो वस्फ पैदा कर जहां से इश्क़ चलता है वहां तक नाम पैदा कर अगर सचा है इश्क़ में तू ऐ बानी आदम निग़ाह -ऐ -इश्क़ पैदा कर मैं तुझ को तुझसे ज़्यादा चाहूँगा मगर शर्त ये है के अपने अंदर जुस्तजू तो पैदा कर अगर न बदलू तेरी खातिर हर एक चीज़…
©Md Kasim Nadaf
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