जाने क्यों लड़कियों पर बचपन से ही पाबंदी लगायी जाती है, खेलने-कूदना लड़कियों के लिए नही बना है।
उन्हें बस श्रृंगार करना और घर के काम करना सिखाया जाता है।।
सबसे बड़ी वजह यही लड़कियों का कमजोर होना, वो खुद को ऐसी ही बना लेती है, खुद को कमजोर, निःसहाय, अबला समझ लेती है।।
और कहते है न, हम जैसी सोच रखते है वैसे ही बन जाते है,
बस यही वजह होता है।
अगर बचपन से ही एक लड़की को इतना सिखाया जाए कि, वो भी वो सब कर सकती है, जो उसके भाई करते है, तो ना ही इतने घरेलू हिंसा के मामले आते, ना ही लड़कियां तेजाब से जलती, और ना ही किसीके हवस की शिकार होती।।
पर जमाने की सोच को क्या कहें, वो लड़कियों को बस इतना समझते है, उन्हें सुंदर दिखना चाहिए, उन्हें घर के कामों में निपुण होना चाहिए।।
उन्हें लोगो को रिझाने आना चाहिए।
और यही बढ़ावा मिलता है, उनके पतन का।
उन्हें निःसहाय बनाने का, उन्हें दूसरों की विचारों से चलने का।।
इन्ही बातों से लड़कियां अपना वजूद भूल, अपनी आंतरिक सुंदरता बढ़ाने के बजाय, बाहरी सुंदरता को बनाने में लग जाती है।।
उनका ध्यान संघर्ष से हट श्रृंगार में लग जाता है।
लोगो को समझने से ज्यादा, लोगो को लुभाने में लग जाता है।।
और यही श्रृंगार और सोच उसकी कमजोरी बन जाती है।
कोई झूठी तारीफ भी कर दे, तो बस उसकी कायल हो जाती है।।
उसका अपना पूरा ध्यान अपने अस्तित्व को पहचानने से हटकर, अपने को दूसरों के हिसाब से ढलने में लग जाता है।
और यही शुरू होता है, उनकी अबला होने की कहानी,
अप्सरा बनने की कहानी, भोग्या बनने का सफर।
उसके कमजोर होने का सफर।।
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