बचपन कभी बूढ़ा नहीं होता
ये कभी नहीं अपने रस को खोता
वो बेफिक्र होके खाना और खेलना ।
पता है बड़े हो गए हम
पर क्या दर्द नहीं करते बचपन वाले जख्म
क्या याद नहीं आती दोस्तों की झगड़ा लड़ाई
वो शाम वाली पतंग मांझा लटाई
गोलगप्पे के पानी में इमली की खटाई
शाम में दादी - नानी की कहानी वाली चटाई।
गंगा जी में नहाना
घर से बाहर खेलने जाने का बहाना
मांँ के हाथ का अन्न
पिता का प्रशासन
घर का आंगन।
महीना सावन।
बचपन में लौट जाओ
तितलियां जुगनू उड़ाओ
हमेशा निश्छल खिल खिलाओ।
अमर प्रताप सिंह
Amar Pratap Singh
05.07.2021
©Amar Pratap Singh
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