मेरी कविताएं देखे गए नज़ारों का न्याय नहीं करतीं,
बात तुम्हारी नज़रों की होती है तो ये बात नहीं करतीं,
ये आंखे......
कभी देखो तुम अपने दर्पन में इनकी गहराई को,
थोड़ी राहत थोड़ी चाहत और इनकी अंगड़ाई को,
ढेरों सपने बुनती हैं.... ख़्वावों की रात नहीं बुनती,
बस मुझसे मिलती हैं दरपन के साथ नहीं मिलतीं,
चुप हो जाती हूँ मैं तो खामोशी का पहरा करतीं हैं,
उतरे चेहरे को देख अपने दर्द को गहरा करती हैं,
टुक टुक बातें करती हैं ........आवाज़ नहीं करतीं,
सब कुछ कह देती हैं बातें कोई राज नहीं करतीं,
किसी नदी सी निश्छल बहती धारा सी आंखे,
टूटते तारों की इक आस का सहारा सी आंखे,
इंतज़ार का हर पल लेकर वक्त पे जो पहरा कर दे,
मुलाकात में उस पल में शाम को जो गहरा कर दे,
इक उम्मीद किरन सी ब्याकुल ये रात नहीं करती ,
रोजाना इश्क़ से मिलती हैं ज़रा भी लाज नहीं करती,
©deepshi bhadauria
#UskiAankhein