बेरुखी का दर्द बयान करने की चाह थी दिल में, पर लफ् | हिंदी शायरी

"बेरुखी का दर्द बयान करने की चाह थी दिल में, पर लफ्ज़ तो तेरी खामोशी से डर कर ही टूट गए। वो सितम ढाते हैं मगर चेहरे पे कोई शिकन नहीं, जैसे मेरे आंसू ही उनके चेहरे की मुस्कान बन गए हों ©Shailendra Gond kavi"

 बेरुखी का दर्द बयान करने की चाह थी दिल में,
पर लफ्ज़ तो तेरी खामोशी से डर कर ही टूट गए।

वो सितम ढाते हैं मगर चेहरे पे कोई शिकन नहीं,
जैसे मेरे आंसू ही उनके चेहरे की मुस्कान बन गए हों

©Shailendra Gond kavi

बेरुखी का दर्द बयान करने की चाह थी दिल में, पर लफ्ज़ तो तेरी खामोशी से डर कर ही टूट गए। वो सितम ढाते हैं मगर चेहरे पे कोई शिकन नहीं, जैसे मेरे आंसू ही उनके चेहरे की मुस्कान बन गए हों ©Shailendra Gond kavi

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