अनिल हो सकता है मर्द जिस्म का भूखा
परन्तु औरत ने नपुंसक से शादी कब की?
कामवासना अद्भुत प्रेरक शक्ति-सत्ता है
जिसकी परिधि में है सकल मानव शरीर
बाह्य और आंतरिक स्त्राव यही जीवन है..
तात्कालिक संतुष्टि और सृष्टि चक्राधार
अन्तर किया गया बिन विवेक जग द्वारा
पिता, पति और पुत्र ने औरत को त्यागा
औरत लाचार होकर कहीं की नही रही..
जबकि औरत के किसी भी रूप द्वारा
त्याग किया गया पुरुष देह का..ओह!
अस्तित्व अभी तक सनातन-सा ही रहा
इसलिए पुरुष बिकता रहा भरें बाजार में
पर फिर भी बाज़ारू औरत को ही कहा..
औरत और मर्द की मौलिक रचनानुसार
तात्विक समीक्षा में समान एवं स्वतंत्र है
दूसरे शब्दों में समान है तो एक ही तो है
फिर एक के लिए भिन्न-भिन्न नियम क्यों?
©Anil Ray
#thought