क्यों तुम रुक रुक कर चलते हो
मंजिल तक जाना नही क्या
क्यों रो रो कर बैठे हो
हंसकर मंजिल तक जाना nhi क्या
क्यों गिर कर पड़े हुए हो
उठकर मंजिल तक जाना nhi क्या
क्यों कान लगा लगाकर लोगो की बाते सुनते हो
नाअ न दाज करके मंजिल तक जाना नही क्या
क्यों मुसिब्तो का मन का पहाड़ लिए बैठे हो
महंत करके मंजिल तक जाना नही क्या
क्यों अपने मां बाबा की आशा पर पानी फेर बैठे हों
नदिया पार करके मंजिल तक जाना nhi क्या
©Captain Jack