दिल हो या शीशा हो,टूट ही जाता है। सात जनम का साथ द | हिंदी शायरी

"दिल हो या शीशा हो,टूट ही जाता है। सात जनम का साथ देने वालो का ,साथ क्यूं छूट जाता है। हमने देखा है, वादों को, कसमों को, टूटते हुए, वफा का सारा भरम,एक पल में टूट जाता है। जितना नाजुक होता है ये दिल, क्यूं टूट जाता है? क्यों? ©Writes Noorain Naaz"

 दिल हो या शीशा हो,टूट ही जाता है।
सात जनम का साथ देने वालो का ,साथ क्यूं छूट जाता है।
हमने देखा है, वादों को, कसमों को, टूटते हुए,
वफा का सारा भरम,एक पल में टूट जाता है। 
जितना नाजुक होता है ये दिल,
क्यूं टूट जाता है?
क्यों?

©Writes Noorain Naaz

दिल हो या शीशा हो,टूट ही जाता है। सात जनम का साथ देने वालो का ,साथ क्यूं छूट जाता है। हमने देखा है, वादों को, कसमों को, टूटते हुए, वफा का सारा भरम,एक पल में टूट जाता है। जितना नाजुक होता है ये दिल, क्यूं टूट जाता है? क्यों? ©Writes Noorain Naaz

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