बेचैन मन मचलता भी है और तड़प ता भी है
कभी कभी पतंगों सा सुलगता भी और बुजता भी है
एक पल मैं आसमान छुता भी है और निचे गिरता भी है
मन बिना सवार का घोड़ा है तैज दोडता भी है और रुकता भी है मन बड़ा चंचल है यै चलता भी है और रुकता भी है
SURINDER
©surender kumar
#BechainMan