सावन की हर शाम सुहानी होती है
चुनरिया इस रुत में धानी होती है ।
लफ्जों की मुट्ठी में कैद नहीं होते
अंदर भी एक कहानी होती है।
सोच के लब पे तबस्सुम आ जाए
ऐसी भी बेनाम कहानी होती है ।
तड़प उठती हूं सावन की बरसात में
जैसे कोई मीरा दीवानी होती है।
जज्बात की लहर काबू में कहाँ आती है
दरिया जैसी इसमें रवानी होती है।
©Dharmendra singh
#One season