तेरे दरबार में हर बार सर झुकाने मैं आऊं, तू अगर दे

"तेरे दरबार में हर बार सर झुकाने मैं आऊं, तू अगर दे खुशियां तब मैं भी मुस्कुराऊं।। कौन कहता है कि तेरे दर से कोई खाली लौटा, भरे मेरी ना भी झोली तेरे दर फिर भी मैं आऊं।। wild Sudhir Aarya ©आर्य सुधीर कुमार"

 तेरे दरबार में हर बार सर झुकाने मैं आऊं,
तू अगर दे खुशियां तब मैं भी  मुस्कुराऊं।।
कौन कहता है कि तेरे दर से कोई खाली लौटा,
भरे मेरी ना भी झोली तेरे दर फिर भी मैं आऊं।।
wild Sudhir Aarya

©आर्य सुधीर कुमार

तेरे दरबार में हर बार सर झुकाने मैं आऊं, तू अगर दे खुशियां तब मैं भी मुस्कुराऊं।। कौन कहता है कि तेरे दर से कोई खाली लौटा, भरे मेरी ना भी झोली तेरे दर फिर भी मैं आऊं।। wild Sudhir Aarya ©आर्य सुधीर कुमार

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