यूँ मैं तंन्हा अकेला ,बेचैन आधी रातों को ।
तेरे बिना बिख़रा सा हर पहर।
समझे क्यू ना तू मेरी बातों को।
शायद अकेला जगा हूँ मैं।
जब सोया है सारा शहर।
जब तू दूर होती है।
अकेला सा मै होता हूं।
तन्हाई में यूँ यादे तेरी ढाती कहर।
तू ही एक सहारा है।
तेरे बिना तो इस दुनियां में घुटन का है ज़हर।
पर तेरे सिवा कोन समझेगा मेरे जज़्बातों को।
में यूँ तंन्हा अकेला ,बेचैन आधी रातों को।
लोकेश पाल
यूँ मैं तंन्हा अकेला ,बेचैन आधी रातों को ।
तेरे बिना बिख़रा सा हर पहर।
समझे क्यू ना तू मेरी बातों को।
शायद अकेला जगा हूँ मैं।
जब सोया है सारा शहर।
जब तू दूर होती है।
अकेला सा मै होता हूं।
तन्हाई में यूँ यादे तेरी ढाती कहर।