दर्द जब तड़पाने लगा मुझे,
सताने लगा मुझे,
दर्द ने जब उखाड़ दिया, फिर से मेरे सीने में दफ़न जख्मों को,
दर्द से टपकते हुए आंसुओं ने जब भिगो दिया जखमों को,
जख्मों की पीड़ा ने जब छलनी किया मेरा सीना,
धड़कन दर्द से जब थमने लगी,
सांसे जब घुटने लगी,
आह, निकली मुंह से मेरे,
आंसू आंख से गिर कर होंठों पर आ रुके मेरे,
दर्द को कम करता हूं मै,
ज़हर नहीं दवा हूं मैं
कुछ पल आराम आए तुझे
इसलिए आंख से निकलता हूं मैं,
आसूं सच कह रहा था शायद मुझसे
, निकला आंख से जो मेरी, तो मुझे आराम आया
आंसू पीकर प्यास बुझाई
तब जाकर मुझे नींद आई
©Babita Kumari
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