खुद की खुद से पहचान की जद्दोजहद में,
बीत जाता है हर दिन मेरा |
रिश्तों को खुश करने की चाहत में नज़र आता है,
हर रोज खुद का नया चेहरा |
बात ज़ब हो अपनों का दामन खुशियों से भरने की,
मैं भूल जाता हूँ खुद ही सब कुछ बस यूँही अपना सारा |
यही मैं हूँ बस यही पहचान है मेरी,
सदके में प्रभु के झुक जाता है सर मेरा |
✍️✍️✍️डॉ गरिमा त्यागी
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